Image Source : FILE
यूएस प्रेसिडेंट जो बाइडन और ईरानी प्रेसिडेंट इब्राहिम रईसी
Iran-America: ईरान और अमेरिका के बीच तनाव बरकरार है। दोनों देशों की दुश्मनी के बीच कैदियों की अदला बदली हुई है। इसके तहत अमेरिका ने 5 कैदी मांगे, जिसे ईरान की राजधानी तेहरान से रवाना कर दिया गया। ये कैदी वहां से कतर पहुंचे। यह जानकारी एक अधिकारी ने दी। बंदियों के कतर पहुंचने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि ईरान में कैद 5 निर्दोष अमेरिकी आखिरकर अपने वतन वापस लौट रहे हैं। जब ये कैदी विमान से कतर पहुंचे तो वहां अमेरिकी राजदूत ने इन बंदियों से मुलाकात की। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कतर एयरवेज ने तेहरान के मेहराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़ान भरी। इसका उपयोग पहले भी कैदियों की अदला बदली में किया जाता रहा है।
अधिकारी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर यह जानकारी दी, क्योंकि कैदियों की अदला-बदली की प्रक्रिया अभी जारी है। इससे पहले दिन में अधिकारियों ने बताया था कि कभी फ्रीज की गई करीब 6 अरब डॉलर (49 हजार 976 करोड़ रुपए) की ईरानी संपत्ति कतर पहुंचने के बाद कैदियों की यह अदला-बदली होगी। यह अदला-बदली के मुख्य शर्तों में से है। कैदियों की अदला-बदली का मतलब यह नहीं है कि अमेरिका और ईरान के बीच तनाव कम हो गया है। दोनों देशों के बीच ईरान के परमाणु कार्यक्रम सहित विभिन्न मुद्दों पर तनाव की स्थिति अभी भी बरकरार है।
परमाणु हथियार बनाने की कवायद में जुटा है ईरान
ईरान कहता आ रहा है कि वह परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण काम के लिए चला रहा है। इसी बीच ईरानी विदेश मंत्रालय के अनुसार कैदियों की अदला बदली के लिए मांगी गई रकम कतर के पास है। यह रकम पहले दक्षिण कोरिया के पास थी। ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता प्रवक्ता नसीर कनानी ने सरकारी टेलीविजन पर यह टिप्पणी की लेकिन उनकी इस टिप्पणी के बाद आगे का प्रसारण रोक दिया गया था।
ईरान के दो कैदी रहेंगे अमेरिका में
कनानी ने कहा कि ‘दक्षिण कोरिया सहित कुछ देशें में फ्रीज की गई ईरानी संपत्ति अब ‘डीफ्रीज’ कर दी गई है।’ उन्होंने कहा कि ‘अब सारी संपत्ति देश के नियंत्रण में आ जाएगी।’ कनानी ने आगे कहा कि ‘ईरान में बंदी बनाए गए पांच कैदियों को अमेरिका को सौंपा जाएगा।’ उन्होंने कहा कि ईरानी कैदियों में से दो अमेरिका में रहेंगे।
रिहा किए गए कैदियों के नाम
सियामक नमाजी को 2015 में हिरासत में लिया गया था और बाद में जासूसी के आरोप में 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। वहीं इमाद शागी पेशे से बिजनेसमैन हैं, इन्हें 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। ईरानी मूल के मोराद तहबाज़, जो एक ब्रिटिश-अमेरिकी संरक्षणवादी हैं, 2018 में गिरफ्तारी के बाद 10 साल जेल की सजा मिली थी। अन्य दो कैदियों में एक पुरुष और एक महिला है। इन दोनों ने पहचान सार्वजनिक न करने का अनुरोध किया था।
India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्पेशल स्टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Asia News in Hindi के लिए क्लिक करें विदेश सेक्शन
करीब 30 वर्षों की लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार अजरबैजान ने फिर से नागोर्नो-काराबाख पर कब्जा पा लिया है। अभी तक यह शहर आर्मीनिया के अधीन था। यहां आर्मीनिया के सैनिकों का शासन था। मगर पिछले कई वर्षों से आर्मीनिया और अजरबैजान में नागोर्नो-काराबाख के लिए भीषण जंग हुई है। दोनों पक्षों की ओर से हजारों सैनिकों और लोगों की जानें गई। अब जाकर अजरबैजान ने नागोर्नो-काराबाख को अपने कब्जे में ले लिया है। लिहाजा अब यहां की अलगाववादी सरकार भी शीघ्र ही भंग हो जाएगी।
नागोर्नो-काराबाख की अलगाववादी सरकार ने बृहस्पतिवार को ऐलान किया कि एक जनवरी 2024 तक खुद को भंग कर देगी। हाल ही में अजरबैजान ने अपने से अलग हुए क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करने के लिए आक्रामक कार्रवाई की थी और नागोर्नो-काराबाख में आर्मीनियाई सैनिकों से अपने हथियार डालने तथा अलगाववादी सरकार से खुद को भंग करने के लिए कहा था। इसके बाद नागोर्नो-काराबाख की अलगाववादी सरकार की ओर से यह ऐलान किया गया है।
अलगाववादियों ने 30 वर्षों तक किया नागोर्नो-काराबाख पर शासन
नागोर्नो-काराबाख पर लगभग 30 वर्षों तक अलगाववादियों का शासन था। नागोर्नो-काराबाख पर दोबारा नियंत्रण हासिल करने के बाद अजरबैजान ने बुधवार को कहा कि क्षेत्र की अलगाववादी सरकार के पूर्व प्रमुख को आर्मेनिया में घुसने की कोशिश के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया। अजरबैजान के सीमा सुरक्षा बल ने रुबेन वर्दनयान की गिरफ्तारी की घोषणा की। बल ने कहा कि वर्दनयान को देश की राजधानी बाकू ले जाकर ‘‘संबंधित प्राधिकारियों’’ को सौंप दिया गया, जो उनके बारे में फैसला करेंगे। (एपी)
संयुक्त राष्ट्र महासभा से इतर पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूं ही नहीं कहा कनाडा खालिस्तान का गढ़ बन चुका है, बल्कि इसके पीछे नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) के पास पूरा काला चिट्ठा मौजूद है। एनआइए के ये दस्तावेज इस बात की तस्दीक करते हैं कि कैसे कनाडा खालिस्तानी आतंकियों के लिए भारत विरोधी साजिशों का लॉचिंग पैड बन गया है। NIA की जांच में साफ हो चुका है कि प्रतिबंधित आतंकी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल मुख्य तौर पर यूरोप और नार्थ अमेरिका में रहने वाले सिख समुदाय से फंड इकट्ठा करता है।
बब्बर खालसा इंटरनेशनल ने कनाडा में अलग-अलग शहरों में सिख रैलियों और प्रदर्शन के जरिये भी फंड इकठ्ठा किया। इस फंड का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने में किया गया। NIA ने अपनी तफ्तीश में सबसे बड़ा खुलासा ये किया कि बब्बर खालसा इंटरनेशनल का संबंध डॉन दाऊद इब्राहिम से भी है, जिसके पुख्ता सबूत भारतीय जांच एजेंसी के पास मौजूद हैं। NIA की जांच में ये भी पता चला कि बब्बर खालसा इंटरनेशनल ने दाऊद इब्राहिम के जरिये पाकिस्तानी आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तय्यब और इंडियन मुजाहिद्दीन की मदद से भारत के खिलाफ साजिश को अंजाम दिया।
बब्बर खालसा नेटवर्क की दाऊद के बंगले पर हो चुकी है कई बैठकें
एनआइए के अनुसार बब्बर खालसा नेटवर्क की दाऊद के साथ कई बैठकें हो चुकी हैं। साल 2002 में भी बब्बर खालसा इंटरनेशनल के लखबीर सिंह के करीबी इक़बाल बंटी को अब्दुल करीम टुंडा करांची में दाऊद के बंगले पर भी लेकर गया था, जहां इनके बीच भारत के खिलाफ साजिशों को अंजाम देने को लेकर एक मीटिंग हुई थी। NIA की जांच में ये भी सामने आया है कि बब्बर खालसा इंटरनेशनल के तार पाकिस्तान के अलावा नार्थ अमेरिका, यूरोप स्कैंडेनेविया, कनाडा, यूके, बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, नोवत और स्विट्जरलैंड तक फैला है।
पाकिस्तान की मदद से कर रहे भारत में साजिश
बब्बर खालसा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की मदद से भारत के खिलाफ अपने ऑपरेशन को अंजाम दे रहा है। जांच में ये भी सामने आया है कि पाकिस्तान में मौजूद बब्बर खालसा इंटरनेशनल का चीफ वाधवा सिंह और गैंगस्टर से आतंकी बने हरिंदर सिंह रिन्दा दोनों ISI के इशारे पर बब्बर खालसा की कमान संभाले हुए हैं और साल 2020 से हिंदुस्तान के खिलाफ पूरी तरह एक्टिव हैं। यह लंबे समय से भारत पर हमला करने के फिराक में हैं।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत पर लगाए गए आरोपों के बीच एक बड़ा खुलासा सामने आ रहा है। सूत्रों के अनुसार भारत को मिली जानकारी के मुताबिक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कराई है। ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान ने यह काम भारत और कनाडा के रिश्ते को खराब करने के लिए किया है। इस बात का शक जताया जा रहा है कि ISI ने भाड़े के क्रिमिनल्स से निज्जर की हत्या करवाई है।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक निज्जर पर ISI इस बात का दबाव बना रही थी कि पिछले 2 सालों में कनाडा में जो गैंगस्टर आए हैं वह उनको पूरी तरीके से सहयोग करे। जबकि निज्जर ड्रग और हथियारों की तस्करी से आए धन को आईएसआई को नहीं देना चाहता था। यह भी कहा जा रहा है कि निज्जर का झुकाव पाकिस्तान के पुराने नेताओं के प्रति था। इसलिए आईएसआई के प्रति उसकी वफादारी कम हो गई थी। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि जब निज्जर ने ISI की यह बात नहीं मानी तो पाकिस्तान की ओर से यह डबल क्रॉस साजिश रची गई।
आईएसआई खालिस्तानियों से मिलकर भारत में करा रहा ड्रग तस्करी
इतना ही नहीं, सूत्रों के मुताबिक आईएसआई की मदद से ही खालिस्तानी आतंकी गैंगस्टरों के साथ मिलकर पंजाब में ड्रग्स तस्करी का बड़ा नेटवर्क चला रहे हैं। जिसकी कमाई का बड़ा हिस्सा खालिस्तानी आतंकी और आईएसआई तक पहुंचता था, लेकिन पिछले कुछ समय से निज़्ज़र की वजह से आईएसआई की पकड़ इस नेटवर्क पर ढीली पड़ रही थी। इस हत्याकांड के बाद अब आईएसआई ने निज्जर के रिप्लेसमेंट की भी तलाश शुरू कर दी है और एक बार फिर वह भारत विरोधी खालिस्तानी आतंकी समर्थक एक बड़ा जलसा कनाडा में निकालने की तैयारी कर रहा है।