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इमरान को मिला अधिकार समूहों का साथ, सैन्य अदालत में समर्थकों पर मुकदमे की आलोचना

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इमरान खान, पूर्व पीएम पाकिस्तान

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अब कई अधिकार समूहों का भी साथ मिलना शुरू हो गया है। पाकिस्तान के कई अधिकार समूहों ने इमरान खान के समर्थकों पर सेना के कानूनों के तहत मुकदमा चलाने के लिए आलोचना की है। साथ ही इसे लेकर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इसे नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन भी करार दिया है। अधिकार समूहों का कहना है कि नागरिकों पर मुकदमा चलाने के लिए सैन्य अदालतों का इस्तेमाल निंदनीय कदम है।

अलजजीरा की खबर के अनुसार एक 40 वर्षीय पाकिस्तानी ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि गत 9 मई को जैसे ही इमरान खान को गिरफ्तार करने की खबर फैली। वैसे ही मैंने इस तरह से पूर्व पीएम का अपहरण किए जाने का विरोध करने के लिए सोचा। फिर  “मैंने पीटीआइ [पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ] समर्थकों के हमारे व्हाट्सएप ग्रुप को मैसेज किया कि हमें इस गैरकानूनी कृत्य के विरोध में बाहर इकट्ठा होना चाहिए। इस तरह अकरम उन 80 लोगों में शामिल हो गए जो खान की रिहाई की मांग के लिए पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में सड़कों पर उतरे। अकरम ने कहा कि “हमारे पास तख्तियां थीं और हम खान के समर्थन में नारे लगा रहे थे।

शुरुआत में, वर्दीधारी पुलिसकर्मी हमारे पास आए और सख्ती से कहा कि सड़कों को ब्लॉक न करें या कोई नागरिक अशांति पैदा न करें। लेकिन आधे घंटे के भीतर, सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों का एक समूह आया और हममें से 40 से अधिक को उठा लिया, हमें एक पुलिस वाहन में फेंक दिया और हमें एक हवालात में ले गया। 30 से अधिक अन्य लोगों के साथ “एक छोटे सेल में” रखे जाने से पहले उन्हें पांच अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में ले जाया गया था। “परिस्थितियां प्रतिकूल थीं, और वहां सांस लेने के लिए मुश्किल से ही कोई जगह थी। मुझे रिहा करने से पहले, पुलिस ने बिना कोई मामला दर्ज किए मुझे दो दिनों तक रखा। 11 मई को रिहाई उसी दिन हुई जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने खान की गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया था।

सैन्य अदालत में चलेगा मुकदमा

पंजाब प्रांत के अंतरिम सूचना मंत्री आमिर मीर ने कहा कि पूर्वी शहर लाहौर में शीर्ष सैन्य कमांडर के आवास और अन्य सैन्य इमारतों को निशाना बनाने के आरोपियों पर सैन्य अदालतों में मुकदमा चलाया जाएगा। अब तक , जहां 3,200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इन अपराधियों की पहचान हमलों में उनकी संलिप्तता की 100 प्रतिशत पुष्टि के बाद ही की गईॉ। मीर ने बुधवार को संवाददाताओं से कहा, हम उनमें से एक उदाहरण पेश करेंगे ताकि कोई भी भविष्य में इसे दोहराने की हिम्मत न कर सके। मंगलवार को, पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (NSC) ने देश के कठोर सेना कानूनों के तहत दंगों में शामिल लोगों पर मुकदमा चलाने के सेना के फैसले को मंजूरी दे दी, जो नागरिक अदालतों को खत्म कर देता है। सैन्य अदालतें पाकिस्तान की नागरिक कानूनी व्यवस्था से अलग हैं जहां न्यायाधीश सेना की कानूनी शाखा के सदस्य होते हैं।

दोषी को अन्य अदालत में अपील का अधिकार नहीं

सैन्य प्रतिष्ठानों में इन मुकदमों की सुनवाई हो रही है, जहां मीडिया की पहुंच नहीं है। अगर दोषी ठहराया जाता है, तो किसी व्यक्ति को अपने मामले को किसी अन्य अदालत में अपील करने का कोई अधिकार नहीं है। इसीलिए पाकिस्तान के भीतर अंतर्राष्ट्रीय अधिकार संगठनों और समूहों ने नागरिकों पर मुकदमा चलाने के लिए सैन्य अदालतों का उपयोग करने के फैसले की कड़ी आलोचना की है। साथ ही तर्क देते हुए कि यह प्रक्रिया के नागरिकों के अधिकार का उल्लंघन करता है। पाकिस्तानी सेना देश के राजनीतिक मामलों में एक प्रमुख खिलाड़ी है और 1947 से तीन दशकों से अधिक समय तक सीधे तौर पर इस पर शासन किया है। पिछले साल अविश्‍वास के एक संसदीय वोट के जरिए हटाए गए खान ने अपनी गिरफ्तारी और पीटीआई के खिलाफ कार्रवाई के लिए बार-बार सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर को जिम्मेदार ठहराया है। वहीं पाकिस्तान की सरकार और सेना दोनों ने खान पर आर्मी के खिलाफ नफरत फैलाने का आरोप लगाया है और कहा है कि पिछले हफ्ते हुए दंगों में शामिल लोगों को न्याय के कठघरे में लाया जाएगा। बुधवार को एक बयान में सेना ने सेना प्रमुख के हवाले से कहा, “हाल ही में सुनियोजित और सुनियोजित दुखद घटनाओं को किसी भी कीमत पर दोबारा नहीं होने दिया जाएगा।”

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ईरान और अमेरिका के बीच 5 कैदियों की हुई अदला बदली, 6 अरब डॉलर भी लौटाएगा यूएस, तनाव बरकरार

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यूएस प्रेसिडेंट जो बाइडन और ईरानी प्रेसिडेंट इब्राहिम रईसी

Iran-America: ईरान और अमेरिका के बीच तनाव बरकरार है। दोनों देशों की दुश्मनी के बीच कैदियों की अदला बदली हुई है। इसके तहत अमेरिका ने 5 कैदी मांगे, जिसे ईरान की राजधानी तेहरान से रवाना कर दिया गया। ये कैदी वहां से कतर पहुंचे। यह जानकारी एक अधिकारी ने दी। बंदियों के कतर पहुंचने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि ईरान में कैद 5 निर्दोष अमेरिकी आखिरकर अपने वतन वापस लौट रहे हैं। जब ये कैदी विमान से कतर पहुंचे तो वहां अमेरिकी राजदूत ने इन बंदियों से मुलाकात की। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कतर एयरवेज ने तेहरान के मेहराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़ान भरी। इसका उपयोग पहले भी कैदियों की अदला बदली में किया जाता रहा है।

अधिकारी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर यह जानकारी दी, क्योंकि कैदियों की अदला-बदली की प्रक्रिया अभी जारी है। इससे पहले दिन में अधिकारियों ने बताया था कि कभी फ्रीज की गई करीब 6 अरब डॉलर (49 हजार 976 करोड़ रुपए) की ईरानी संपत्ति कतर पहुंचने के बाद कैदियों की यह अदला-बदली होगी। यह अदला-बदली के मुख्य शर्तों में से है। कैदियों की अदला-बदली का मतलब यह नहीं है कि अमेरिका और ईरान के बीच तनाव कम हो गया है। दोनों देशों के बीच ईरान के परमाणु कार्यक्रम सहित विभिन्न मुद्दों पर तनाव की स्थिति अभी भी बरकरार है।

परमाणु हथियार बनाने की कवायद में जुटा है ईरान

ईरान कहता आ रहा है कि वह परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण काम के लिए चला रहा है। इसी बीच ईरानी विदेश मंत्रालय के अनुसार कैदियों की अदला बदली के लिए मांगी गई रकम कतर के पास है। यह रकम पहले दक्षिण कोरिया के पास थी। ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता प्रवक्ता नसीर कनानी ने सरकारी टेलीविजन पर यह टिप्पणी की लेकिन उनकी इस टिप्पणी के बाद आगे का प्रसारण रोक दिया गया था।

ईरान के दो कैदी रहेंगे अमेरिका में

कनानी ने कहा कि ‘दक्षिण कोरिया सहित कुछ देशें में फ्रीज की गई ईरानी संपत्ति अब ‘डीफ्रीज’ कर दी गई है।’ उन्होंने कहा कि ‘अब सारी संपत्ति देश के नियंत्रण में आ जाएगी।’ कनानी ने आगे कहा कि ‘ईरान में बंदी बनाए गए पांच कैदियों को अमेरिका को सौंपा जाएगा।’ उन्होंने कहा कि ईरानी कैदियों में से दो अमेरिका में रहेंगे।

रिहा किए गए कैदियों के नाम

सियामक नमाजी को 2015 में हिरासत में लिया गया था और बाद में जासूसी के आरोप में 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। वहीं इमाद शागी पेशे से बिजनेसमैन हैं, इन्हें 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। ईरानी मूल के मोराद तहबाज़, जो एक ब्रिटिश-अमेरिकी संरक्षणवादी हैं, 2018 में गिरफ्तारी के बाद 10 साल जेल की सजा मिली थी। अन्य दो कैदियों में एक पुरुष और एक महिला है। इन दोनों ने पहचान सार्वजनिक न करने का अनुरोध किया था।

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H1B वीजा बंद करना चाहते हैं विवेक रामास्वामी, जानें कारण

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विवेक रामास्वामी।

जैसे-जैसे अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे ही नेताओं की ओर अलग-अलग तरीके के वादे किए जा रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से भारतवंशी विवेक रामास्वामी काफी पॉपुलर हो रहे हैं। उनके बोलने की शैली और वादें लोगों को काफी पसंद भी आ रहे हैं। हालांकि, अब उन्होंने एक ऐसा बयान दे दिया है जिससे कई लोगों को निराशा हो सकती है। 

क्या बोले रामास्वामी?


अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए दावेदारी पेश करने वाले  रामास्वामी ने एच-1बी वीजा की सुविधा को खत्म करने की बात कही है। उन्होंने इसे सिसट्म को गिरमिटिया दासता का रूप बताते हुए कहा कि इस लॉटरी आधारित सिस्टम को खत्म कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस लॉटरी आधारित सिस्टम को समाप्त कर देना चाहिए। रामास्वामी के अनुसार,  एच-1बी वीजा से सिर्फ उन कंपनियों को लाभ पहुंचता है जिन्होंने एच-1बी अप्रवासी को स्पांसर किया था। 

इससे बदलेंगे

विवेक रामास्वामी ने कहा है कि अमेरिका में चेन बेस्ड माइग्रेशन को खत्म करने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जो लोग अमेरिका में परिवार के सदस्य के रूप में आते हैं योग्यता वाले माइग्रेंट्स नहीं होते हैं। रामास्वामी ने कहा कि अगर वो अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे तो एच-1बी वीजा सिस्टम को मेरिटोक्रेटिक एंट्री से बदल देंगे। 

खुद किया 29 बार इस्तेमाल

खास बात ये है कि वर्तमान में अमेरिका में जारी एच-1बी वीजा की सुविधा का इस्तेमाल खुद विवेक रामास्वामी ने भी कई बार किया है। रिपोर्ट्स की मानें तो उन्होंने 29 बार इसका इस्तेमाल किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अपनी फार्मा कंपनी में हाई स्किल्ड कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए रामास्वामी ने कई बार एच-1बी वीजा की सुविधा का इस्तेमाल किया है। 

क्या है एच-1बी वीजा?

अमेरिकी प्रशासन द्वारा जारी किया जाने वाले एच-1बी वीजा को एक गैर-प्रवासी वीजा माना जाता है। इन्हें अमेरिका में काम करने जाने वाले लोगों को दिया जाता है। कुशल कर्मचारियों की कमी को देखते हुए अमेरिकी कंपनियां अपने यहां इन लोगों को हायर करती है। एच-1बी वीजा पाने वाला शख्स अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अमेरिका में रह सकता है। इस वीजा की अवधि 6 साल तक के लिए होती है। इसके बाद लोग अमेरिकी नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। 

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‘खालिस्तानी आतंकी की हत्या में हो सकता है भारत का हाथ’, कनाडा के PM ट्रूडो का बयान

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कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो।

ओटावा: खालिस्तानी आतंकियों के मामले में G-20 समिट में फटकार खाने के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हताशा भरा बयान दिया है। पीएम ट्रूडो ने ओटावा में हाउस ऑफ कॉमंस में कहा है कि कनाडा की सुरक्षा एजेंसियां भारत सरकार और खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बीच कनेक्शन की जांच कर रही हैं। ट्रूडो ने कहा कि कनाडा के नागरिक की उसी की सरजमीं पर हत्या में किसी दूसरे देश या विदेशी सरकार की संलिप्तता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। ट्रूडो के बयान के साथ ही भारत और कनाडा के रिश्तों में तल्खी बढ़ने के आसार हैं।

18 जून को हुई थी आतंकी निज्जर की हत्या

बता दें कि निज्जर की हत्या को ट्रूडो ने अपने देश की संप्रभुता का उल्लंघन बताया है। उनके इस बयान के साथ ही कनाडा ने एक भारतीय राजनयिक को निकालने का भी एलान कर दिया है। कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जॉली ने राजनयिक को निकालने का एलान करते हुए कहा कि उनका देश हर हाल में अपने नागरिकों  की रक्षा करेगा। खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर को NIA ने भगोड़ा घोषित कर रखा था। इसी साल 18 जून को आतंकी निज्जर की उस वक्त गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वो कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में एक गुरुद्वारे की पार्किंग में खड़ा था। 

‘कनाडा कानून का पालन करने वाला देश’
जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि उन्होंने इस बारे में जी-20 समिट के दौरान पीएम मोदी से भी बात की थी। उन्होंने साथ ही ये भी दावा किया कि उन्होंने दिल्ली यात्रा के दौरान ये मुद्दा भारत सरकार के सामने उठाया था। कनाडा की संसद में ट्रूडो ने कहा, ‘बीते कुछ हफ्तों से कनाडा की सुरक्षा एजेंसियां कनाडा के नागरिक हरदीप सिंह निज्जर और भारत सरकार के संभावित कनेक्शन के विश्वसनीय आरोपों की सक्रिय तौर पर जांच कर रही है। कनाडा कानून का पालन करने वाला देश है। हमारी पहली प्राथमिकता ये रही है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां और कानून प्रवर्तन एजेंसियां सभी कनाडाई नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।’

‘सभी आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं’
ट्रूडो ने कहा, ‘इस हत्या के दोषियों को कटघरे में खड़ा करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। कनाडा ने भारत सरकार के शीर्ष अधिकारियों और सुरक्षा अधिकारियों के सामने ये मुद्दा उठाया था। किसी भी कनाडाई नागरिक की हमारी ही सरजमीं पर हत्या में किसी विदेशी सरकार की संलिप्तता हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है। हम इस बेहद गंभीर मामले पर हमारे सहयोगियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। मैं कड़े शब्दों में भारत सरकार से अनुरोध करता हूं कि इस मामले की तह तक जाने के लिए वो कनाडा के साथ सहयोग करें।’

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